उठो चित्त ओर  स्व-चित्र को देखो
  संक्षिप्त सवेरों से
  स्वर्णिम स्वर्णिम राग भरो
  चिल्लाती हुई धुपों से
  कल कल जैसी आग पियो
  और पी डालो
  धुन्ध्ले आसमान कि कडवाहट
  अब ध्वस्त अंधेरों
  से भस्म कर डालो निद्रा को
  तब जागोगे, तब गूंजेगी
  लोक कथाओ के खोये पल
  निर्भर निर्भर प्रकृति पर
 कृति के कानो से मिल डालो
 अब अपने को।